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Supreme Court ने कर दिया साफ, पिता की ऐसी प्रोपर्टी पर बेटे को नहीं कोई हक

By Meera Sharma

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Supreme Court: परिवार में संपत्ति के बंटवारे को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं। खासकर पिता की संपत्ति पर बेटों और बेटियों के अधिकार को लेकर अनेक मतभेद सामने आते हैं। लेकिन इस विषय पर भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसले बिल्कुल स्पष्ट हैं। आइए जानते हैं कि पिता की संपत्ति पर बेटे का अधिकार कब होता है और कब नहीं।

स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में क्या अंतर है?

भारतीय कानून संपत्ति को मुख्य रूप से दो प्रकारों में बांटता है – स्व-अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति। स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत, कमाई या प्रयासों से खुद हासिल किया हो। ऐसी संपत्ति पर उस व्यक्ति का पूर्ण अधिकार होता है और वह अपनी इच्छानुसार इसे किसी को भी दे सकता है।

दूसरी ओर, पैतृक संपत्ति वह होती है जो चार पीढ़ियों से चली आ रही हो। यानी ऐसी संपत्ति जो पिता, दादा, परदादा या उनके पूर्वजों से मिली हो। इस प्रकार की संपत्ति पर परिवार के सभी वारिसों का संयुक्त अधिकार होता है, जिसमें बेटे, बेटियां और अन्य कानूनी वारिस शामिल होते हैं।

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बेटे को पिता की किस संपत्ति पर अधिकार नहीं होता?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर पिता की संपत्ति स्व-अर्जित है, तो बेटा उस पर जबरन दावा नहीं कर सकता है। चाहे वह बेटा शादीशुदा हो या अविवाहित, स्व-अर्जित संपत्ति पर पिता का पूर्ण अधिकार होता है। पिता अपनी इच्छा से इस संपत्ति को वसीयत के माध्यम से बेटे को दे सकते हैं, अन्यथा बेटे का उस पर कोई कानूनी हक नहीं होता।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अंगदी चंद्रन्ना बनाम शंकर एवं अन्य मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि स्व-अर्जित संपत्ति अपने आप संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं बन जाती, जब तक कि संपत्ति का मालिक स्वयं इसके लिए सहमति न दे।

मिताक्षरा कानून और संपत्ति का अधिकार

भारत के हिंदू परिवारों में संपत्ति से जुड़े मामलों में “मिताक्षरा कानून” का विशेष महत्व है। इस कानून के अनुसार, पैतृक संपत्ति में बेटे को जन्म से ही अधिकार प्राप्त होता है। लेकिन स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में पिता को पूरा अधिकार होता है कि वह उसे किसे दे और किसे न दे।

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मिताक्षरा प्रणाली के अंतर्गत, पिता अपनी अर्जित संपत्ति का एकमात्र मालिक होता है और उसका निर्णय अंतिम माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि पिता अपनी स्व-अर्जित संपत्ति से बेटे को बाहर रख सकते हैं और इस निर्णय को किसी भी कानूनी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।

वसीयत का संपत्ति में महत्व

यदि किसी व्यक्ति ने अपनी संपत्ति के बारे में वसीयत बना रखी है, तो उसके अनुसार ही संपत्ति का वितरण होता है। वसीयत में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार संपत्ति का वितरण कर सकता है, चाहे वह स्व-अर्जित हो या पैतृक।

लेकिन अगर कोई वसीयत नहीं बनाई गई है, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत संपत्ति का विभाजन किया जाता है। इस अधिनियम के अनुसार, स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में भी, अगर वसीयत नहीं है, तो संपत्ति कानूनी वारिसों में बराबर बंट जाती है।

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भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार, बेटों को पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। उन्हें यह संपत्ति तभी मिल सकती है जब पिता स्वेच्छा से उन्हें इसमें शामिल करें या वसीयत के माध्यम से दें।

वहीं, पैतृक संपत्ति पर सभी उत्तराधिकारियों का संयुक्त अधिकार होता है। परिवारों को इन कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूक रहना चाहिए ताकि भविष्य में संपत्ति संबंधी विवादों से बचा जा सके और परिवार की शांति बनी रहे।

संपत्ति के मामले जटिल हो सकते हैं, इसलिए जरूरी है कि संपत्ति से जुड़े निर्णय लेने से पहले कानूनी सलाह अवश्य लें और सभी दस्तावेजों को ठीक से तैयार करें। इससे न केवल भविष्य में होने वाले विवादों से बचा जा सकेगा, बल्कि परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सद्भाव भी बना रहेगा।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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